कविता (ढोंग किया अमीरी का पहले )


ढोंग किया अमीरी का पहले

अब मोमबत्तियाँ जलाते हो ।
फिल्मी दुनिया के सीन देखकर
यूहीं तुम खिलखिलाते हो ।

युवा पीढ़ी को दी जा रही गन्दगी
क्यों नहीं जान पाते हो

दस इंच का टॉप पहनाकर
सोच को बदलो यही चिल्लाते हो।
प्रदर्शन करती खुद वो जब
वासना का करे प्रहार
जब बिगड़ गयी युवा पीढ़ी
अब दिख रहा तुम्हे अत्याचार
एक फ़िल्म भी पारिवारिक नहीं
आज तक तो जागे नहीं
कोई रोके इस गन्दी हवा को
अब तक आये कोई आगे नहीं
बस मोमबत्तियों से शोक जताकर
चार दिन मातम मनाते हो
क्यों हो रहा है अक्सर ये
कारण नहीं जान पाते हो
युवाओं को दिखाई जा रही नग्नता
इसको कोई नहीं रोक पाते हो
उकसाकर उनको हद से ज्यादा
बाद में पछताते हो
अमीरों के पास कपड़े ही है कमी बहुत
जान गए हैं हम ये बातें
गरीब होता है शिकार वासना का
गरीबी को अक्सर पड़ती है लातें
फिल्मों का रोक दो ये ड्रामा
अब भी है वक़्त बचा लो बर्बादी
नहीं तो देखते ही देखते
हन्नी सिंह की ये पीढ़ी , कर लेगी खुद की बर्बादी
सम्भल लो और सम्भाल लो
अपने परिवार और ऊंची सोच की दुकानों को
बहन बेटी का पर्दा ,
समझा दो जमाने को
ज्यादा नहीं है दर्द बताना
खुद ही इशारा समझो मुसाफिर
एक बार जो वक्त फिसला
ना वापिस आएगा ये फिर
कलमें दर्द बयां है कर दिया
सोच में परिवर्तन लाने को
उठो विचारों से ऊपर तुम
न कि नँगापन लाने को
बॉलीवुड की गंदगी का मिलकर
तुम जड़ से नाश करो
होगा परिवर्तन नैतिकता का
एक बार तो विश्वास करो
एक बार तो विश्वास करो ।
कृष्ण मलिक अम्बाला 15.04.2018

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