Poetry on Father/पिता के नाम एक कविता/Fathers day Special


 तूने सीखाया मुझे चलना इक इक कदम 

तोड़ा मेरी नादानी का हर इक भ्रम 

तूने पकड़ कर मेरी कलाई 

मुझे चलने की कला सिखलाई 

     बना मेरे सुख दुख का रखवाला 

      बन बैठा तेरे राज में मैं मतवाला 

       तेरी गोद में बीता जो बचपन 

        याद है आता मुझको हर दम 

           तेरे खून के कतरे की मेहनत आज जा कर समझा हूँ 

           जुदा न हो तेरे हर गम में मैं वो तेरा लम्हा हूँ 

     

           माना के आज बहुत ऊंचाई पर हूँ मैं 

         पर आज भी तेरे बिना तनहाई पर हूँ मैं 

        वक्त की आंधी में तेरा कर्ज दर्द भूला बैठा 

        अपनों को छोड़ दोस्ती अनजानों से लगा बैठा 

        भाग दौड़ में तेरी मेहनत की हर याद भुलाई 

       पर अनजानों ने क्या खूब हर पल की याद दिलाई 

        तेरे एहसानों की जब मैंने किताब छपवाई 

         कागज के लिए लकड़ी कम पड़ आई 


माफी देना खुदा मेरी हर उस गलती की 

दिल उसका दुखाने में मैंने जब भी जल्दी की 

भगवान कुछ भी नहीं उसके आगे ये कहता मेरा मन है 

अब तक ये सब सुन आँख न भरी जिसकी वो सच में पिता का दुश्मन है 

तमन्ना ये मेरी कि मैं तेरा कैसे ये कर्ज चुकाऊँ 

सोचता हूँ मैं भी तुझ जैसा पिता बन के दिखाऊँ 

Post a Comment

1 Comments