जिन्दा तस्वीर तो नहीं यारों,
मुर्दा परिंदा हूँ ।
खुशियों का गुलाम नहीं ,
गमों का बाशिंदा हूँ ।
आता है पतझड़ बीतने पर बसन्त हर बार ,
खिलती है उस वक्त हर कली ।
होगी चमकती अपनी भी जिंदगानी ,
इस उम्मीद में हर पल जिन्दा हूँ ।
जिन्दा तस्वीर तो नहीं यारों ,
मुर्दा परिंदा हूँ ।
भावनाओं का सौदागर नहीं ,
अरमानों का खरीददार ही लगा लो ।
हर पल गैरों सा समझने वालों ,
कभी कभार ही अपना बना लो ।
पल पल यादों में सताऊं इस लायक नहीं ,
पल में न भूलने वाली नाचीज चुनिंदा हूँ ।
थिरकेगा हर कोने की आवाज में इक दिन ये नाम ,
उसी मंजिल को ही बढ़ते हुए तो जिन्दा हूँ ।
जिन्दा तस्वीर तो नहीं यारों ,
मुर्दा परिंदा हूँ।
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