ये उन्नति है या तमाशा
एक तरफ साक्षी , दूसरी तरफ बिपाशा ।
कॉलेज में रखती एक मर्यादा ।
दूसरी नशों व्यसनों पर हर समय आमादा ।
एक राधा बनकर जग में प्रेम पाठ पढाये ।
दूसरी कपड़ों से कर दुश्मनी , नग्नता दिखाये ।।
तरक्की सोच की करनी थी या बदन दिखाने की ।
माता बहन क्यों मुख मोड़ गयी , संस्कृति से इस जमाने की।
संस्कार गहने थे माताओं के , तभी विश्व गुरु कहलाये।
चंद वर्षों में करके चीथड़े उनके , खूब विदेशों ने हम बहकाये ।
ईरानी स्मृति के धैर्य और सादगी का पुजारी ये भाई ।
जिसने व्यवहार में सहजता और पहनावे में सादगी दिखलाई।
भावी पीढ़ी की बहनें करेंगी दुराचार, ये कलयुग का रंग है।
विवेक का पाठ उन्हें सिखलाउँ , लेखनी की मेरी ये जंग है।
अपने बच्चों को कैसे रोकोगे , नग्नता के रखवालों ।
अभी भी कुछ मौके हैं , सूट सलवार सिलवालो ।
फिर बेटी घूमेंगी रात भर , रोक नहीं पाओगे ।
खुद को देखिये पहले , यही कोसते पाओगे ।
अभी भी है समय , बॉलीवुड में गन्दगी का नाश करो ।
स्वच्छता अभियान का , फिल्मों में भी प्रयास करो ।
जानते हैं वक्त की आंधी में , कुछ ही सुन पाएंगे ।
बाकि तो अपने आधुनिकता की आंधी में , अनसुना ही कर जायेंगे ।
सोचिये तो जरा दिमाग को करके ठंडा ।
क्या लगना नहीं चाहिए नग्नता को डंडा। ।
सोच विचारों बहन बेटी जैसी महिलाओं ।
देश के पहनावे को क्यों न , वही सम्मान दिलाओ ।
सुंदरता पर हो शक जिसको खुद की
शायद वही जिस्म दिखाती है।
देखता नहीं मेरी ओर कोई
शायद ये सोच सभी को लुभाती है।
पर भाई की पुकार यही
तेरी सादगी में सुंदरता है अपार
त्याग दे इस विदेशी नाटक को
पल भर करके सोच विचार
जीन्स टॉप की धुन में न हो तू सवार
सिलवा ले एक सूट सलवार
इसमें भी लगेगी तू देवी सम सुंदर
आएगा सादगी से तेरे रूप को चौगुना निखार
विरोध भी होगा इस लेखन का मानता हूँ
अच्छी बातों से भड़की दुनिया हमेशा ,
बखूबी जानता हूँ ।
अभी तो जीन्स टॉप की है भूत सवार
कल को होगा उच्च स्तर का दुराचार
भुगतेगी भावी पीढ़ी भी इस झमेले को
होगा हर तरफ उदासी सा अंधकार
कर लो हर तरफ अब भी सभ्यता का उजाला
न निकालों भारत के मान का दिवाला
तरक्की करो खूब बढ़ चढ़ कर तुम बहनों
बस छोड़ दो नग्नता का प्याला
लाखों बहनों तक पहुंचाऊं सन्देश गहन ये
यही है मेरी स्वच्छ अभिलाषा
आप ही बताएं , ये उन्नति है या तमाशा
एक तरफ साक्षी , दूसरी तरफ बिपाशा
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